DMF & CSR: हजारों करोड़ रुपये होने के बाद भी विकास की राह देख रहा सिंगरौली
हजारों करोड़ रुपए होने के बावजूद भी सिंगरौली जिला विकास की राह देख रहा है सिंगरौली जिले में सीएसआर सहित डिस्ट्रिक्ट माइनिंग फंड होने के बावजूद भी विकसित शहरों की सूची में अपना महत्वपूर्ण स्थान नहीं बना पाया है सिंगरौली जिले में होने वाली गतिविधियां ही मात्र केवल सिंगरौली जिले के विकास की आधारशिला को मजबूत कर सकती हैं शासकीय अनुदान के अलावा कुछ राशि ऐसी उपलब्ध है जिससे कि जिले का समुचित विकास किया जा सकता है पर विकास के नाम पर खर्च होने वाली राशि खर्च होने के बावजूद भी जिले का समुचित विकास अब तक नहीं हो पाया है।सिंगरौली भारत की ऊर्जा राजधानी के रूप में उभर रहा है, यह स्थान पहले श्रृंगावली के नाम से जाना जाता था, जिसका नाम ऋषि श्रृंगी के नाम पर रखा गया था, जो एक समय घने और अप्राप्य जंगलों से घिरा हुआ था और जंगली जानवरों का निवास था। यह स्थान इतना विश्वासघाती माना जाता था कि इसका उपयोग रीवा राज्य के राजाओं द्वारा किया जाता था, जिन्होंने 1947 तक इस क्षेत्र पर शासन किया था, इसका उपयोग दोषी नागरिकों और अधिकारियों को हिरासत में लेने के लिए एक खुली जेल के रूप में किया जाता था। उक्त समय में प्राकृतिक संपदा सहित वन संपदा से परिपूर्ण इस धरा पर बेहद कम आबादी निवास करती थी। 24 मई 2008 को, मध्य प्रदेश सरकार ने 3 तहसीलों के साथ सीधी से अलग होकर सिंगरौली को अपना 50 वां जिला घोषित किया है। सिंगरौली, चितरंगी और देवसर। 1 अप्रैल 2012 को दो नई तहसीलें जोड़ी गईं। माडा और सरई। सिंगरौली जिले में मौजूद कंपनियों की यदि हम बात करें तो नार्दन कोलफील्ड लिमिटेड नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन रिलायंस पावर अदानी पावर जेपी पावर आदि कई देश के नामी-गिरामी कंपनियों ने अपनी इकाई जिले में स्थापित की है एवं बहुत से औद्योगिक इकाइयों की स्थापना को लेकर प्रयास जारी है। कंपनियों के सामाजिक दायित्व के तहत सीएसआर फंड से जहां आसपास के क्षेत्रों का विकास करना है ऐसे में कंपनियों के द्वारा हर वर्ष का एक करोड रुपए बहा दिए जाते हैं परंतु जिले के समुचित विकास को गति मिलने की रफ्तार बेहद धीमी दिखाई पड़ रही है।
जिले में उपलब्ध है हजारों करोड़ रुपये
एमएमडीआर अधिनियम, 1957 की धारा 9बी राज्य सरकार को खनन गतिविधियों से प्रभावित लोगों और क्षेत्रों के लाभ के लिए खनन से प्रभावित सभी जिलों में जिला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ) ट्रस्ट स्थापित करने का अधिकार देती है। तदनुसार, संबंधित राज्य सरकारों ने देश के 23 राज्यों के 626 जिलों में डीएमएफ की स्थापना की है। खान मंत्रालय ने खनन प्रभावित क्षेत्रों में विकास और कल्याण कार्यों को शुरू करने के लिए डीएमएफ द्वारा कार्यान्वित किए जाने वाले आदेश दिनांक16.09.2015 के माध्यम से प्रधान मंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना (पीएमकेकेकेवाई) के लिए दिशानिर्देश प्रसारित किए।
पीएमकेकेकेवाई दिशानिर्देशों के अनुसार : डीएमएफ को प्रभावित क्षेत्रों और पीएमकेकेकेवाई योजना के तहत कवर किए जाने वाले लोगों की पहचान करने और उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर कम से कम 60% धनराशि खर्च करने के निर्देश जारी किए गए हैं: (i) पेयजल आपूर्ति; (ii) पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण उपाय; (iii) स्वास्थ्य देखभाल; (iv) शिक्षा; (v) महिलाओं और बच्चों का कल्याण; (vi) वृद्ध और विकलांग लोगों का कल्याण; (vii) कौशल विकास; और (viii) स्वच्छता और अन्य प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर 40% तक (i) भौतिक बुनियादी ढांचा; (ii) सिंचाई; (iii) ऊर्जा और जलसंभर विकास; और (iv) खनन जिले में पर्यावरणीय गुणवत्ता बढ़ाने के लिए कोई अन्य उपाय। इसके अलावा, मध्य प्रदेश जिला खनिज फाउंडेशन नियम 2016 के नियम 12, उपनियम (1)(iv) में मध्य प्रदेश राज्य के संपूर्ण क्षेत्र को खनन प्रभावित क्षेत्र के रूप में स्वीकार किया गया है।
कई सौ करोड़ होने के बावजूद भी सिंगरौली जिला आज भी पिछड़ा हुआ है सिंगरौली जिले में मूल रूप से शिक्षा स्वास्थ्य एवं रोजगार के मामले में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाया है बात करें यदि हम शिक्षा की तो गुणवत्ता युक्त शिक्षा के साथ जिले में मौजूद पढ़े-लिखे बेरोजगारों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि इसके साथ ही जिले में व्याप्त प्रदूषण के कारण बढ़ रही बीमारियों की समुचित इलाज को लेकर जिले में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा विकल्प मौजूद नहीं है किसी भी गंभीर हादसे या गंभीर रूप से पीड़ित बीमार व्यक्ति के इलाज को लेकर आज भी अन्य शहरों का रुख जिले वासियों को करना पड़ता है।
सीएसआर के नाम पर भी प्रतिवर्ष करोड़ों खर्च
सामाजिक दायित्व को लेकर कंपनियों के द्वारा प्रतिवर्ष कई 100 करोड रुपए की राशि खर्च की जा रही है बजाय लोगों के उत्थान के या फिर क्षेत्र विकास के स्थिति जस की तस ही दिखाई देती है वही हम बात करें प्रमुख कंपनियों की तो नार्दन कोलफील्ड लिमिटेड सहित एनटीपीसी जैसी शासकीय उपक्रम की कंपनियां जिले में स्थापित है इन कंपनियों की सालाना सीएसआर मद के रूप में कई सौ करोड़ रुपए की राशि होती है।
कहीं जिम्मेदार जनप्रतिनिधि ही तो नहीं है जिले की प्रगति में बाधक
जिले के विकास को लेकर जिले में मौजूद डिस्ट्रिक्ट माइनिंग फण्ड सहित सीएसआर राशी पर गौर करें तो यह एक काफी बड़ी राशि है जो कि सिंगरौली जिले के खाते में आती है आज जिले में मौजूद खनन क्षेत्र से होने वाली आमदनी एवं कंपनियों के सामाजिक दायित्व के तहत उत्पन्न राशि को भी मिलाकर यदि जिले का समुचित विकास करने को लेकर पहल की जाती तो आज सिंगरौली जिला प्रदेश ही नहीं देश भर में एक विकसित जिले के रूप में जाना जाता अब इसे जनप्रतिनिधियों की उदासीनता कहें या फिर स्थानीय जनता को लेकर उपेक्षा कहा जा सकता है आज तक इन संबंधित मुद्दों को लेकर किसी भी उचित पटल पर कोई संतोषजनक प्रयास शायद नहीं किए गए हैं। हां यह जरूर हुआ है कि जिले में उपलब्ध राशि का अन्य जिलों में ले जाकर भरपूर उपयोग किया जा रहा है जिस कारण से सिंगरौली जिले के हिस्से की राशि को लेकर सेंधमारी की प्रथा चल पड़ी है।