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सरकारी भूमि को अतिक्रमण कारियों ने निगला

सीधी:- जिले में राजस्व विभाग के रिकार्ड में दर्ज शासकीय भूमियों को अतिक्रमणकारियों ने पूरी तरह से निगल लिया है। स्थिति यह है कि सभी ग्राम पंचायत क्षेत्रों में जो चरनोई भूमि राजस्व रिकार्ड में दर्ज है उस पर गांव के दबंगो का कब्जा हो चुका है। वर्तमान में स्थिति यह है कि गांव में सभी लोग यह चाहते हैं कि उनके घर के सामने से सार्वजनिक रोड़ निकले। लेकिन जरूरत पड़ने पर ग्रामीण एक फिट भूमि भी अपनी छोंडने को तैयार नहीं होते। ग्रामीणों के इसी स्वार्थ के चलते जिले में स्वीकृत सैकड़ों सडक़ों का निर्माण कार्य पंचायतों में नहीं हो पा रहा है। ग्राम पंचायतों में सभी बस्तियों एवं टोलों के लिए सडक़ का निर्माण कार्य लगातार स्वीकृत किया जा रहा है। कई सडक़ें तो ऐसी हैं जो भूमि विवाद के चलते वर्षों से नहीं बन पा रही हैं। ग्रामीणों द्वारा सडक़ की मांग तो की जाती है लेकिन उसमेें कोई सहयोग नहीं किया जाता। यहां तक कि जमीनी विवाद भी खड़ा कर दिया जाता है। जिसके चलते गांव के सभी घरों तक सडक़ की सुविधा उपलब्ध नहीं हो पा रही है। जानकारों के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में काफी संख्या में शासकीय भूमि हल्का पटवारियों के रिकार्ड में दर्ज है लेकिन उनमें अवैध कब्जा हो चुका है। हालात यह है कि कई अतिक्रमणकारी तो राजस्व अमले की सांठ-गांठ से सालों पहले फर्जी पट्टा भी तैयार करके उसे अपनी बता रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के साथ ही शहरी क्षेत्रों में भी जहां भी शासकीय भूमि खाली नजर आ रही थी वहां झुंगी-झोपड़ी बनाकर लोगों द्वारा अवैध कब्जा कर लिया गया है। कुछ लोग तो अवैध कब्जा के बाद इनमें व्यावसायिक गतिविधियां भी संचालित कर रहे हैं। वर्तमान में हालात यह है कि गांव में खाली भूमि न मिलने पर अब लोग मुख्य सडक़ के किनारे ही पटरियों पर अवैध कब्जा कर रहे हैं। विडंबना यह है कि इस मामले में न तो राष्ट्रीय राजमार्गा के अधिकारी कुछ कर रहे हैं और न ही राज्य मार्ग के जिम्मेदार अधिकारी फुटपाथी अतिक्रमणों को हटाने की जरूरत समझ रहे हैं। इस मामले में जिम्मेदार राजस्व अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध बनी हुई है। जिले के बड़े राजस्व अधिकारी मुख्य मार्गों से गुजरते हैं तो उन्हें सडक़ के किनारे मौजूद फुटपाथी अतिक्रमण नजर नहीं आता। उनके द्वारा राजस्व अमले को भी सडक़ों के किनारे मौजूद अतिक्रमणों को हटाने के लिए कभी निर्देशित नहीं किया जाता। यदि शासकीय भूमि में इसी तरह अतिक्रमण करनें की होड़ मची रही तो आने वाले कुछ वर्षों में सडक़ के किनारे पटरियों पर भी झुंगी-झोपड़ी एवं फुटपाथी दुकानें नजर आने लगेंगी। इस वजह से शासकीय भूमि एवं सडक़ों की पटरियों में फैले अवैध अतिक्रमण को हटाने के लिए ठोस कार्य योजना बनाई जाए और उस पर क्रियान्वयन के लिए संबंधित विभागों के अधिकारियों एवं कर्मचारियों की टीम बनाकर कार्रवाई सुनिश्चित करानें के लिए निर्देशित किया जाए। जिससे बढ़ते अतिक्रमण पर अंकुश लग सके।

गायब हो गई पूरी तरह से नजूल की भूमि :-
जिला मुख्यालय में नजूल के पास काफी भूमि मौजूद है। रिकार्डों में नजूल की भूमि भले ही मौजूद हो लेकिन वास्तविक रूप से इन पर लंबे समय से अवैध कब्जा हो चुका है। नजूल में लंबे समय तक पदस्थ रहे लिपिकों द्वारा राजस्व भूमि पर अवैध कब्जा बनानें के लिए पूरी तरह से मुस्तैदी दिखाई जाती रही है। उनके संरक्षण के चलते ही नजूल की एक फुट भूमि कहीं खाली नजर नहीं आ रही है। नजूल की सबसे ज्यादा भूमि सूखा नाला के आसपास मौजूद थी। जिस पर अवैध मकान सैकड़ों की संख्या में बन चुके हैं। नजूल के लिपिकों की सांठ-गांठ के चलते संबंधित अधिकारियों द्वारा भारी भरकम सुविधा शुल्क लेकर मनमानी पूर्वक पट्टा बनानें का काम भी सालों से किया जाता रहा है। वर्तमान में पुराना बस स्टैंड, पटेल पुल, गोपालदास मंदिर क्षेत्र, उत्तरी करौंदिया मुख्य मार्ग के समीप, टेक्सी स्टैंड हिरण नाला, बनिया कॉलोनी, कोतर कला क्षेत्र की सैकड़ों हेक्टेयर नजूल भूमि में अतिक्रमण हो चुका है। सुविधा शुल्क केे चलते अधिकांश अतिक्रमणकारियों को नजूल की ओर से मनमानी तौर पर पट्टा भी दिए गए हैं। जिसके चलते उनके द्वारा न्यायालयीन कार्रवाई भी की जा रही है। नजूल भूमि के अतिक्रमण को लेकर सालों से शिकायतें हो रही हैं। तत्संबंध में मीडिया में भी खबरें प्रकाशित होती हैं। लेकिन जिम्मेदार अधिकारी इन पर कोई कार्रवाई करना नहीं चाहते। ऐसे में आभाष होता है कि अधिकारी सीधी में आने के बाद फाईलों को निपटाने में ही अपना अधिकांश समय गुजारते हैं। उनके द्वारा जिले की बड़ी समस्याओं के स्थाई निदान के लिए कोई भी कार्रवाई करनें की जरूरत नहीं समझी जाती।

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