ताले में कैद रहती है आयुर्वेदिक अस्पताल बहरी
मनमानी समय में अस्पताल का खुलता है ताला
मुफ्त में वेतन ले रहे हैं यहां पदस्थ कर्मचारी
सीधी-तहसील मुख्यालय बहरी में संचालित शासकीय आयुर्वेदिक अस्पताल बहरी अव्यवस्थाओं के मकडज़ाल में घिरा हुआ है। यहां आने वाले अधिकांश मरीजों को इसलिए मायूश होकर लौटना पड़ता है क्योंकि यहां ताला बंद रहता है। अस्पताल मनमानी समय में कुछ घंटे के लिए खुलता है। यहां पदस्थ कर्मचारी बिना काम किए ही वेतन लेने के आदी हो चुके हैं। दरअसल शासकीय आयुर्वेदिक अस्पताल बहरी में जमकर भ्रष्टाचार देखा जा रहा है, बावजूद जिम्मेदार अधिकारियों के द्वारा कोई भी कार्यवाही नहीं की जा रही है। सूत्रों की माने तो तीन से चार कर्मचारी अस्पताल में पदस्थ हैं। लेकिन कोई भी अस्पताल नहीं आता है। लिहाजा मरीज भी काफी परेशान होते हैं। यहां पदस्थ सरकारी कर्मचारियों के द्वारा शासन की मंशा पर पूरी तरह से पानी फेरा जा रहा है। कर्मचारियों की स्वेच्छाचारिता के चलते आयुर्वेदिक उपचार का लाभ क्षेत्रीय मरीजों को नहीं मिल रहा है। जिसके चलते लोगों में काफी आक्रोश व्याप्त है। चर्चा के दौरान कुछ लोगों का कहना था कि ऐसा आभाष होता है कि आयुर्वेदिक अस्पताल बहरी का संचालन केवल कुछ कर्मचारियों को मुफ्त में वेतन देने के लिए किया जाता है। जब अस्पताल का संचालन ही निर्धारित समय में नहीं होता तो इसको बंद कर देना चाहिए। यहां जब भी मरीज आते हैं अस्पताल में ताला लटका नजर आता है। लोगों की शिकायत पर शासकीय आयुर्वेदिक अस्पताल बहरी का दोपहर लगभग 12:30 बजे जायजा लिया गया तो अस्पताल में ताला लटका हुआ था। वहां पर एक भी कर्मचारी मौजूद नहीं थे। खबर है कि यहां पर 3 से 4 कर्मचारी पदस्थ हैं लेकिन कोई भी कर्मचारी दिखाई नहीं दिया। अस्पताल में ताला बंद था, साथ ही वहां पर ग्रामीणों ने भी यह आरोप लगाया कि यहां पर कोई भी अधिकारी, कर्मचारी नहीं आते हैं। सख्त लापरवाही देखी जा रही है। विभागीय अधिकारी भी अपने जिम्मेदारी से पीछे हटते दिख रहे हैं। उनके द्वारा उक्त मामले पर किसी भी प्रकार की जांच नहीं की जाती है और ना ही कोई ठोस कार्यवाही की जाती है, ताकि लापरवाहों के मन में प्रशासन का कोई भी भय हो। इसी वजह से मनमानी थमने का नाम नहीं ले रही है। देखना दिलचस्प यह होगा कि खबर प्रकाशन के बाद उक्त मामले पर विभागीय अधिकारियों के द्वारा क्या कार्यवाही की जाती है। या फिर इसी तरह कर्मचारियों की मनमानी चलती रहेगी।
आयुर्वेदिक अस्पतालों का हाल-बेहाल
जिले भर में संचालित आयुर्वेदिक अस्पतालों का हाल बेहाल बताया जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित आयुर्वेदिक अस्पतालों की हालत तो और भी दयनीय है। आयुर्वेदिक अस्पतालों में वैसे भी मरीजों की आमद काफी कम होती है। कोई मरीज यदि आयुर्वेद से ही अपने मर्ज का चिकित्सा करानें की मंशा से यहां पहुंचता है तो सबसे पहले मालूम पड़ता है कि डॉक्टर ही नहीं है। अस्पतालों में केवल भृत्य या कम्पाउंडर मिलते हैं। इनके द्वारा ही मरीज को कुछ दवाएं मर्ज पूंछकर दे दी जाती हैं। अधिकांश मरीजों को आयुर्वेद अस्पताल से कुछ खास दवाएं भी बांटी जाती हैं। कोई भी मर्ज हो दवाएं सभी के लिए एक ही तरह की दी जाती हैं। इसी वजह से मरीज को भी आयुर्वेदिक दवाओं का उपयोग करने पर कोई लाभ नहीं होता। जिला मुख्यालय में संचालित आयुर्वेदिक अस्पताल की स्थिति भी कुछ इसी तरह है। यहां पदस्थ अधिकांश डॉक्टर नहीं पहुंचते। जो पहुंचते भी हैं वह मनमानी समय पर जाकर उपस्थिति रजिस्टर में हस्ताक्षर करके गायब हो जाते हैं। विडंबना यह है कि आयुर्वेदिक अस्पतालों में सालों से चल रही भर्रेशाही को दूर करने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा भी औचक निरीक्षण नहीं किया जाता।